चावल के छोटे से दानो को ले कर जाती हुई चीटियो की एक लाइन को देख रही थी वो. वैसे तो वो ४ साल की है पर कभी कभी उसकी बात सुनकर ऐसा लगता है वो बहुत सयानी है. मैंने ऐसे ही हसकर पूछ लिया, "क्या देख रही हो बेटा", वो बोली "चीटिया चावल ले कर जा रही है, आज पार्टी करेंगी". मै हंस पड़ा, "हाँ पार्टी करेंगी चावल के ५ - ६ दानो से". वो बोली, "नहीं डैडी ये तो कल से चावल जमा कर रही है". मैंने पूछा "आप इनको कल से देख रही हो, वो बोली मै इनको रोज़ देखती हूँ, कभी चावल, कभी चीनी कभी तो मेरा टूटा बिस्कुट भी ले जाती है". "अच्छा तो ये रोज़ आती है", मैंने पूछा, वो बोली "रोज़ नहीं आती जब खूब सारा खाना जमा हो जाता है तो ये पार्टी करती है फिर और खाना लेने आती है". मुझे लगा ये उसके लिए एक खेल है , चीटियों को खाना ले जाते देखना, मैंने पूछा "जब ये नहीं आती है तो आप उदास हो जाते हो, वो बोली नहीं तो जब ये नहीं आती तो मुझे पता चल जाता है कि आज वो पार्टी कर रही है."
अब मुझे भी चीटियों की बातें करने में मज़ा आ रहा था तो मैंने पूछा "अगर किसी दिन इन्हे खाना नही मिला तो इनका क्या होगा, वो बड़े आराम से बोली वो कही और से खाना ले आएगी पर भूखी नहीं रहेगी पता है क्यों , क्युकी इनके पास पैसे नहीं है और ये खाना खरीद नही सकती". मेरी बेटी न पहली बार पैसो की बात की, मुझे इसकी उम्मींद नहीं थी.
मैंने डरते हुए उससे पूछा, "बेटा अगर मेरे पास भी पैसे ख़तम हो गए तो हम क्या करेंगे". वो बोली "तो आप ऑफिस से पैसे ले आना, लेकिन आज कल तो आप ऑफिस जाते ही नहीं हो".
हाँ इसलिए अब ऑफिस से पैसा नहीं मिलेगा, क्रेडिट कार्ड का बिल, लोन की क़िस्त और सरे बिल कैसे जमा होंगे, मै उससे ये कहना चाहता था फिर लगा वो ये सब नहीं समझेगी, पिछले हफ्ते जितने इंटरव्यू दि